सोहागपुर में साहू समाज ने धूमधाम से मनाई कर्मा जयंती।

सोहागपुर// नगर के मुख्य मार्गो से निकली गई भव्य शोभायात्रा सोहागपुर में साहू समाज की आराध्य देवी संत शिरोमणि मां कर्मा में की जयंती मंगलवार को धूमधाम से मनाई गई। कर्मा जयंती पर साहू समाज द्वारा कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साहू समाज के मीडिया प्रभारी ने बताया कि कर्मा जयंती के अवसर पर साहू समाज के युवाओं के द्वारा सुबह वाहन रैली निकाली गई, सुबह 10 बजे से नगर के एक निजी स्कूल में मां कर्मा माई की पूजन एवं सत्यनारायण कथा का आयोजन किया गया।

पूजन के पश्चात समाज की महिला मंडल द्वारा सुबह 11 बजे से दोपहर 3 तक विभिन्न सांस्कृतिक आयोजनों का कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसके पश्चात शाम 5 बजे से स्थानीय काली मंदिर पुराने थाने के पीछे से भव्य शोभा यात्रा निकाली जाएगी जो की पुराना सरकारी अस्पताल, बिहारी चौक, कमानिया गेट, पलकमति पुल चौराहा एवं कोर्ट चौराहा होते हुए आयोजन स्थल पर पहुंची शोभायात्रा में भगवान राधा कृष्ण की चल झांकी आकर्षण का केंद्र रही जिसमें कलाकारों द्वारा राधा कृष्ण का स्वरूप धारण कर सुंदर भजनों पर शानदार प्रस्तुति दी जिसे देखने के लिए चोक चौराहों पर लोगो की भीड़ लगी रही।

शोभायात्रा के दौरान नागरिकों ने भगवान लड्डू गोपाल और माँ कर्मा माई का पूजन कर आशीर्वाद प्राप्त किया। शोभायात्रा में जगन्नाथ को भात जगत पसारे हाथ के जयकारे सुनाई देते रहे। वही कई जगह शोभायात्रा में शामिल साहू समाज के लोगो का विभिन्न संगठनों द्वारा सम्मान किया गया। आयोजन स्थल पर पहुंचने के पश्चात मां कर्मा माई की आरती एवं समाज के बुजुर्गों एवं प्रतिभाओं का सम्मान किया। इसके पश्चात सामाजिक सहभोज के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।

कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहू समाज के लोग उपस्थित रहे जिसमें महिला शक्ति व युवाओं ने उत्साह देखते ही बनता था।-कौन है भक्त शिरोमणि मां कर्मा माई-मां कर्मा का जन्म चैत्र माह कृष्ण पक्ष पापमोचनी एकादशी संवत् 1073 को झांसी उत्तर प्रदेश में बेतवा नदी के पास हुआ था।उनकी माता कमला शाह और पिता रामा शाह थे। पाठशाला से लौटते समय उनकी सहेली तलाब में फिसल गई मां कर्मा तैरना जानती थी उन्होंने सहेली को डूबने से बचाया 13 वर्ष की आयु में उनका विवाह ग्वालियर राज्य के शिवपुरी के पास नरवर गढ़ में एक प्रतिष्ठित तेल व्यापारी के पुत्र चतुर्भुज शाह के साथ हुआ कुछ समय बाद एक पुत्र हुआ।

वह तिलहन, तेल,खली के बड़े व्यापारी थे। उन्होंने अपने क्षेत्र में पानी पीने के लिए कुआं, तालाब, रुकने के लिए साराय, धर्मशाला आदि का निर्माण किया,उनकी और पूरे तैलप तेली बंश की समाजिक ख्याति बढ़ती जा रही थी वहां के मंत्री, दरवारी जलन रखते थे और मौका ढूंढ़ते थे कैसे तैलप तेली बंश को नुकसान पहुंचाया जाए।आखिर वह मौका मिल गया एक बार राजा के हाथी को खुजली का रोग हो गया मंत्री, दरवारी, और वैद्य ने मिलकर षड्यंत्र रचा और राजा से कहा कि अगर क्वाथ के माच को मिला कर सरसों के तेल में डुबकी हाथी को लगवाई जाय तो हाथी ठीक हों सकता हैं तब राजा ने कहा कि इतना तेल कहां से आयेगा कि तालाब भरा जा सकें तब मंत्री दरवारी ने कहा कि आप के राज्य में इतने धनाढ्य तेली है जो नदी में पुल एवं बड़े बड़े सराय धर्मशाला बनवा सकते हैं तो तालाब भरना कौन सी बड़ी बात है बस राजा ने सभी तैलप तेली बंश को आदेश दिया कि वह सरसों के तेल से मोतिया तालाब एक माह में भर दे नहीं तो सभी तेलियों को फांसी दी जायेगी राजा की मुनादी सुनकर सभी तेली घबरा गये कि कैसे सूखे हुए मोतिया तालाब भरा जा सकेगा , सभी ने एक बैठक बुलाई कि इस संकट से कैसे बचें किसी को कुछ नहीं समझ आ रहा था कि प्राण कैसे बचें तभी संत शिरोमणि मां कर्मा ने आगे आ कर सभी महिलाओं को इकट्ठा कर प्रण किया और पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने और बंश को बचाने का फैसला किया और पुरुषों महिलाओं ने रात दिन तेल पेरना शुरू कर दिया तेल पेरने के लिए बैलों की पूर्ति नंदनी अहिर ने की जो मां कर्मा की प्रिय सहेली थी।रात दिन तेल पेरना और तालाब भरने के चलते, तेली समाज व्यापार नही कर पा रहा था और बर्बाद हो गया और जो भी जमा पूंजी थी सरसों खरीदने में चली गई, एक माह के पहले मोतिया तालाब तो भर गया लेकिन सभी तेली समाज की पूंजी खत्म हो गई अब सभी तेलियों ने मिलकर फैसला किया कि वह अब इस नरवर गढ़ में नहीं रहेंगे और 1098 अषाढ़ संवत् में सभी ने खाने पीने की व्यवस्था कर नरवर गढ़ छोड़ कर राजस्थान की ओर एक साथ चल दिया।

दिन में यात्रा और रात्रीकालीन भोजन विश्राम धीरे-धीरे भोजन सामग्री खत्म होने लगी जब अन्तिम पड़ाव आया तो किसी के पास चावल बचा तो किसी के पास दाल तो किसी के पास आटा किसी के पास सब्जी किसी के पास कुछ भी नहीं अब क्या होगा सभी मां कर्मा के पास गये तब मां कर्मा ने सभी को मार्गदर्शन दिया कि जिसके पास जो कुछ भी हो सभी ले आओ और सभी ने जिसके पास जो था ले आये सभी सामग्री को इकट्ठा पकाया उसे ही खिचड़ी कहते हैं सभी ने मिलकर खाया जिसके पास कुछ भी नहीं था वह भी भरपूर खाया तभी से खिचड़ी का प्रचलन शुरू हुआ।राजस्थान पहुंचने पर पुनः तिलहन,तेल खली का व्यापार मिल कर करने लगें उनका व्यापार बहुत बढा यहां तक कि राजस्थान, विंध्य क्षेत्र, बुन्देलखण्ड, गुजरात, महाराष्ट्र, कौशलराज,तक विशाल फैला इधर नरवर गढ़ से सभी व्यापारी चलें जाने से वह बर्बाद हो गया और राजा का लडका ढोला राजस्थान में विवाह कर मां कर्मा के यहां मजदूरी करने लगा इसी बीच श्री चतुर्भुज शाह के पेट में असहनीय दर्द होने लगा बहुत वैद्य हकीम ने इलाज़ किया लेकिन वह प्राण नहीं बचा पाये और उनका स्वर्गवास हों गया पतिब्रता मां कर्मा ने सती होने का विचार किया लेकिन सभी ने रोका की पेट में दूसरा पुत्र पल रहा है और शिशु हत्या पाप है उन्हें अभी और अच्छे कार्य करना है पुत्र होने के तीन वर्ष बाद उन्होंने जगन्नाथ पुरी जाने का निर्णय लिया और सब कुछ पुत्र को सौंप कर खिचड़ी का समान ले कर पुरी की ओर रवाना हो गई।

जगन्नाथ पुरी पहुंचने पर जब वह खिचड़ी का भोग लगाने मन्दिर पहुंची तो पुजारियों ने धक्का दे कर गिरा दिया उनके सिर में रक्त बहने लगा और बेहोश हो गई जब होश आया तो वह समुद्र तट पर थी उन्होंने पुनः वहीं से भोग लगाया और प्रसाद बांटा उनका प्रसाद अद्भुत एवं स्वादिष्ट था उनका प्रसाद लेने वालों की भीड़ उमड़ पड़ी। यह सिलसिला अनेक दिनों तक चलता रहा और मन्दिर खाली रहने लगे पुजारी परेशान हो गए उनका चढ़ावा आना बन्द हो गया वहीं संत शिरोमणि मां कर्मा के पास कोई कमी नहीं खूब अनाज सब्जी खिचड़ी में जो भी लगता है खूब भक्त दान देते और प्रसाद ग्रहण करते तब पुजारियों ने मिलकर फैसला किया कि खिचड़ी का प्रसाद मां कर्मा के हाथ ही भोग लगाया जाय सभी पुजारी ने मिलकर मां कर्मा की खिड़की का भोग लगवाया तब से लेकर अब तक जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को खिचड़ी चढ़ाने का प्रचलन शुरू हुआ और आज भी भक्त कहते हैं कि जगन्नाथ का भात जगत पसारे हाथ जै जै मां कर्मा देवी।संवत् 1121 शुक्रवार को चैत्र मास बैठकी के दिन प्रातः काल भोग लगाकर संत शिरोमणि मां कर्मा देवी स्वर्ग धाम रवाना हो गई।

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